आज फिर मनुष्य जीवन के कई दिन खत्म हो गए । बधाई सभी प्रकृति प्रेमियों को जिन्होंने उसे संजोने के नाम पर बहुत फ़ोटो खिंचवाए और आज प्रकृति को फिर से दूषित कर दिया । पौधे लगाए चंद और बात करते है ऐसी जैसे मानो जंगल ही बसा दिया हो…. आज बड़े दुःख के साथ उन प्रकृति प्रेमियों को दीपो के पर्व की बधाई जो सिर्फ ढकोसले में जिंदा रहते है क्योंकि शायद उनकी जिंदगी में उन्होंने सीखा है झूठी तसल्ली देना है….आज मेरे शहर की खुली फिजा में जो जहर घुला है उसको सिर्फ वही समझ सकता है जिन्होंने प्रकृति के प्रकोप को नजदीक से देखा है नही तो उदाहरण दिल्ली का देख लो । इतना ही काफी है आज के लिए… समझ गए तो ठीक बाद में यह नही कहना कि प्रकृति तो कहर बरपाती है…..।